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' वै गौं मा क्या धरयुं छ !' .... Gharwali Poetry ..By...Balkrishna Dhyani


' वै गौं मा क्या धरयुं छ !' 


अटैचिम ऊ ड्यारों मा, रख्युं छ एक जमानु
अर तुम पुछण छो ' वै गौं मा क्या धरयुं छ !'

ब्याखुन हुंदा ब्वै , बोल्दी छै आ बणे दूँ,
बबा कि पियारि बिट्टी, मांजी को राजा-सोना,
आँख्युम मौवट काजळ ,माथाम एक टिका,
बोल्दी छै 'खेळी ऐजा',दे कि ऐक टक्का,
तबि छुड़े कि घौर बटि ,ब्वै ते भगान्दा छ्या,
जै जख बि ब्वै,ब्वै ते नि छोडदा छ्या,
लड़ै क़नि छ्या लाडम एक,बछड़ी ऊ आम भुंया,
पुछा ना छो वै आम कि सैलु म क्या धरयुं छ !'

घाम-बुढेणदा रोज दरम,बिछादि छै एक खटलो,
बबा बुलंदा छ्या फिर ,'ऐजा कख छे तू नौनि!'?
बाराखड़ी,पाड़ा,भुरर्या पान लेख गढवाळीम,
सुणि कि पैल सिध, फिर सौ कि उल्टी गिन्ती,
फिर कुच स्वाळ कुच ज्वाब बोल रे कुच बोल,
हम करदा छया निंदि ,अर भुक को भाना,
जोड़ पैरि कि जों का , हिटदा छ हम चौड़ मा
अर तुम पुछण छो ऊं, खुटयुं म क्या धरयुं छ?

ऊ दोपरा कि निंद , वा राता कि कानि
मयेड़ी कि चोर-डाकू , देबता ,राजा-राणी
हुंदु छ्या भैर-भित्र कखि बि कै घौर-घौर मा
हुँदा नि छ्या पड़ोसी,हुँदा छ्या बाड़ा-बौड़ी
जांदा छ्या घुमण कौथिक,चरखि,जलेबि
वा खेती-पाति , ककड़ि मुंगरी ऊ काफळ
कन्धम बैठि बबाजी की घुम बैठ्या हम
क्या क्या बतों मि ' ऐ गौं मा क्या धरयुं छ !'

© बालकृष्ण ध्यानी

उत्तराखंड की लगूलि
UKLaguli


बालकृष्ण डी ध्यानी
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