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मै रावाण



मै रावाण 
हल मै होये दशहरा पर्व पर अजब बात हो गई
रवांण की प्रती को मुझे जलाने का अवसर आया 
बडे उलसा पूर्वक मै मशाल थमी और रवाण अग्नी हवाले कर दिया 
जल ने के बाद मुझ को अफशोस होवा 
दिल ने आवाज दी 
प्रती रूप रावाण को रखा कर दिया 
पर मन मै छुपे रवाण को ना मर सका 
कम क्रोद अहंकार को ना त्यागा सका 
मन के रवाण को ना मारा सखा 
मित्रों मेरी मदद करो 
या तुम भी मेरे संग चलो 

बालकृष्ण डी ध्यानी 
देवभूमि बद्री-केदारनाथ 
मेरा ब्लोग्स 
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

कवी बालकृष्ण डी ध्यानी 
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