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अपने अपने


अपने अपने 

दर्द बनकर सिर्फ दर्द उभरा था 
आँखों के रास्ते वो सिर्फ बहा था 
सपनो का संग लेकर वो देखो 
अताह मन के सागर मै वो डूबा था 
अपने अपने 

क्या पाया क्या उसने खोया था 
दर्द ही को उसने उसे बस धोया 
सपने जो सजाया इस दिल नै 
आँखों बस उसे तोडा औरत्यागा 
अपने अपने 

बस इतना ही भेद बस इतना ही खेल था
रचया था जो मन नै मेरे रीझ्या था तन को मेरे 
फुलं संग तू कभी काँटों संग मेल था
दर्द का बस आरंभ पर अंत का न छुर था 
अपने अपने 

दर्द बनकर सिर्फ दर्द उभरा था 
आँखों के रास्ते वो सिर्फ बहा था 
सपनो का संग लेकर वो देखो 
अताह मन के सागर मै वो डूबा था 
अपने अपने 

बालकृष्ण डी ध्यानी 
देवभूमि बद्री-केदारनाथ 
मेरा ब्लोग्स 
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत 

कवी बालकृष्ण डी ध्यानी

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