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राजधनी गैर सैण


राजधनी गैर सैण

दिण रैण इण गैणी 
पहाडा की दाशा णी बदली 
णी बदली गैणी 
आपरा आपरा मा लगी रैणी 
दिण रैण इण गैणी 

पहाड़ की प्रगती 
इण कखक लुकी गैणी
पहाड़ का बाटा देखा देखी मा 
उन्दारू का बाटा मा सर रुअडी गैणी 
दिण रैण इण गैणी 

क्रांती का बाटा सब बंद हुयेगैणी 
१० बरस हुयेगैणी उत्तरखंड बणेकी 
क्रांतीकरीयुं को सपुनिया की राजधानी 
गैरसैण पहाड़ मा कखक लुकी गैणी 
दिण रैण इण गैणी 

विपद च या व्यथा च ये गढ़ की 
या मेर या मेरा लोगों की सब चुप बैठयांछण 
हाथ मा हाथ धरी की प्रगती मार्ग मा बाधा बाणयाछन
दूँण अस्थाई-स्थाई राजधानी मा प्रगतीणीच मेर गढ़ की 
दिण रैण इण गैणी 

कब आलो ओ दीण कब आलो ओ सवेरा 
कब जगाला लोग कब मंगला आपरा हक
एक नयी जन-क्रांती की जरुरत छा आजा 
को पैलु व्हालो जो ये ये क्रांती मशाला जगवालो 
दिण रैण इण गैणी 

दिण रैण इण गैणी 
पहाडा की दाशा णी बदली 
णी बदली गैणी 
आपरा आपरा मा लगी रैणी 
दिण रैण इण गैणी 

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

बालकृष्ण डी ध्यानी 
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