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लहामो को समेटे हुये मेरी कलम मुझे कंहा ले जाये


लहामो को समेटे हुये
मेरी कलम मुझे कंहा ले जाये
सावन की रिम झिम 
बादलूँ का शोर
बिजली की तडपन
मन के भीतर का चोर
मुझे कुछा कहा जाये
लहामो को समेटे हुये.......
पत्ज्हड़ का जाना
बहार का आना
कलियूं का खिलना
भुवरूं का गुनगुना
उस मै मोसम का मुश्काना
तेरी याद दिलाये
लहामो को समेटे हुये.......
गर्मी की चिमिलाती धूप
उस पर आपका रूप
लगता है बड़ा अनुप
हमे भाता है खबू
मेरा दिल झूम झूम कर गये
तीनू मोसम आपके
जीवन मै बार बार आये
लहामो को समेटे हुये
मेरी कलम मुझे कंहा ले जाये

कवी बालकृष्ण डी ध्यानी
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