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ये अंधेरे उजाले



ये अंधेरे उजाले
साथ साथ हमारे
अलग अलग कभी कभी
कभी कभी जुदा
कभी यंहा कभी वहां
ये अंधेरे उजाले.........
आकार है न ही निकर
अन्दर कभी कभी बाहर
एक सुबह  एक रात
न रंग है न ही रूप न कोई विचार है
न ही उस से कोई अविचार
एक उजाला है धुप  है
दोसरा अँधेरा  है  निशब्द  है
ये अंधेरे उजाले.........
ना तू आज है ना कल
इनका जहाँ मै ना कोई विकल्प है
अश्मन है कोई तू कोई जमीन है
राम है कभी तू कभी रहीम
किसी  का राज किसी काज
लेकिन सब इनके बाद
ये अंधेरे उजाले.........
फिर भी याद है सब को
वो जो सब का रकीब है
देश मै भी वो है विदेश मै भी
आचार मै भी विचार मै भी
झूठ मै भी वो और सच  मै भी
इश संसार मय बर्ह्मंड का
एक अकेला सच है
ये अंधेरे उजाले
साथ साथ हमारे
अलग अलग कभी कभी
कभी कभी जुदा
कभी यंहा कभी वहां
ये अंधेरे उजाले.........

कवी बालकृष्ण डी ध्यानी
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