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महंगाई और गरीबी


 महंगाई और गरीबी
मेरे भी कुछ सपने थे मेरे भी अपने थे
मै भी खुश था  आपकी ही  तरह
कुछ लिखने की कोशिश की थी
पर कुछ लाइन ही लिखा सका
छता अपने से लगाये बेखबर पल्कूं को बोझ ये
अपने आप से शर्मये अपनी गरीबी को
अर्ध नगन देखलाये दोनों हाथ को जोड़े
आप से नेवेदन है की  भविष्य खोजने मै मदद करे
इन्सान होने के कारण इंसानियत का हक अदा करैं
मेरी उंगली पकड़ कर  मुझे फिर से खड़ा करो
मेरी वेदन को अपनी समझो
मुझे अपने गले से लागलो  तुम मेरी पेरणा हो
मुझे निराशा न करो तुहमै देखर ही मुझे धीर आता है
मै आज एक हूँ कल करोडूं मै होओंगा फिर अरबूं मै
फिर कैसे काबू मै करूगे फिर ना मै हाथ आऊँगा
आज मेरी है कल तुम्हारी बरी होगी मेरे भाई
महंगाई  को तुमे भी रास नहीं आओगे
फिर मेरी तरह गिग्गिडावो गे जो मै नै कहा
वो ही दोव्रहारोगे मेरे भी कुछ सपने थे मेरे भी अपने थे 
मै भी खुश था  आपकी ही  तरह
कुछ लिखने की कोशिश की थी
पर कुछ लाइन ही लिखा सका...

कवी बालकृष्ण डी ध्यानी
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