आज मै मन लेके चला
साथ उसके अपना तन ले चला
दोगली दुनिया राहों की
बातों को अपने संग ले चला
हाथ उठया दुवा भी की पर
पापों को अपने संग ले चला
वफ़ा भी की बेवफा हो गया
अश्कूं को अपने संग ले चला
बदल छाये बजली कडकी पर
बरखा को अपने संग ले चला
जी रहा था जीना चाह रहा था पर
जीन्दगी को ओ अपने संग ले चला
आज मै मन लेके चला
साथ उसके अपना तन ले चला
कवी बालकृष्ण डी ध्यानी
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