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अब भी दर्द समाया है ( मेरी टेहरी )


अब भी  दर्द  समाया है
( मेरी टेहरी )

अब भी  दर्द  समाया है 
जो आँखों मै उभर आया 

नयी टेहरी के लिया 
पुरानी टेहरी नै रुलाया 

कुदरत  का खेल था 
पुरानी टेहरी से मेल था 

बिजली के लिये एक 
इतिहास को मिटाया है

हम नै अपने लीये ही
स्वार्थ ढोंग रचाया  है  

समाज को आपने ही 
यथार्थ का पाठ पडया है

ये कैस्ही माया है
हम सब को भरमाया है

एक समाज को हमने 
पानी मै बहाया है 

प्रगती के नाम पर
हम उजाड़ न हों जाये 

ना मीलेगी देव भूमि 
न रहेगा कोई वन 

सोच तो एक फिर
बना ले अपना मन 


अब भी  दर्द  समाया है 
जो आँखों मै उभर आया 

नयी टेहरी के लिया 
पुरानी टेहरी नै रुलाया 

बालकृष्ण डी ध्यानी





कवी बालकृष्ण डी ध्यानी
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