शारीर
सिर्फ एक लाशा है तू.........
आज ये सजीव
कल निर्जीव हो जायेगा
तुम्हारे कुछ कम ना आएगा
तू बतलाऊ क्या करोगे
आज तू मै तुम्हारा हूँ
कल परया होजओंगा
आज तुम्हे कंधे पर बिठ्या
कल मुझे अर्थी पर ले जाओगे
इन हातों से चलना सिखया
कल इन ही से अग्नी दुगे
सिर्फ एक लाशा है तू.........
हड माषं का ये पींजरा
दो दिन का रैन बसेरा
बाद तू उड़ जाना है पंछी
क्या तेरा क्या मेरा
सदियूं से चल रहा यह खेल
समझ ना पाया माया का फेर
इस नै बना दिया सब को ढेर
सिर्फ एक लाशा है तू.........
बंद मुठी कर आया यंह तू
खुलकर कर जायेगा यंह से
रोया था जब आया, सब को हसाया
जायेगा हंसा के पर सब को रुल्या
वीधात की लेखनी लिखेगी हरदम
निकलेगा तेरा दम तब किस्ह ख़तम
न कोई हम दम ना कोई सीतम
ना कोई खुशी ना कोई गम
सिर्फ एक लाशा है तू......
आज ये सजीव
कल निर्जीव हो जायेगा
तुम्हारे कुछ कम ना आएगा
तू बतलाऊ क्या करोगे
आज तू मै तुम्हारा हूँ
कल परया होजओंगा
आज तुम्हे कंधे पर बिठ्या
कल मुझे अर्थी पर ले जाओगे
इन हातों से चलना सिखया
कल इन ही से अग्नी दुगे
बालकृष्ण डी ध्यानी
कवी बालकृष्ण डी ध्यानी
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