नास्तिक और भगवान
नास्तिक
ओ बुलाता नहीं
मै जाता नहीं
आस्था को मै
कदपि मानता नहीं
ओ बुलाता नहीं
दर पे उसके भीख
कभी मांगता नहीं
उस से कोई रिश्ता
मै कदपि जोड़ता नहीं
ओ बुलाता नहीं
कहता है वू अचल
और अवीहल है
कहता हों मै अडीग
और अटल हूँ मै
ओ बुलाता नहीं
मंदीर की ताल बजता नहीं
आरती की थाल सजाता नहीं
क्यों सर को झुकता नहीं
क्यों तुझ को यकींन आता नाही
ओ बुलाता नहीं
नास्तिक हो मै
तुझ पे यकींन करता नहीं
स्तिक है मुझमे
इस लिये तेरी घंटी बजता नहीं
ओ बुलाता नहीं
खुद पर है भरोसा मुझे
इस लिये तुझे सताता नहीं
औरों की तरह
तेरे दर पर आता नहीं
ओ बुलाता नहीं
भगवान
कभी-कभी तू इस रहा से गुजर
लगेगा मुझ को मील कोई हमसफ़र
तुझ को तू नहीं श्रद्धा हम को है तुझ पर
तेरी बड़ी क्रिपा तेरा भार नहीं मुझपर
ओ बुलाता नहीं
धन्य तेरा विश्वास
मै होगया हूँ विहल
मेरी नैना तरसेंगी
तुझे देखने हरपल
ओ बुलाता नहीं
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
कवी बालकृष्ण डी ध्यानी
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