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जाग


जाग 

उठा जाग सवेरा हो गया 
आंखें खोल उठा कर देख 
चहों ओर अँधेरा खो गया 
उठा जाग सवेरा हो गया 

नुतन नये विचार का सवेरा 
नयी चेतन के संचार का सवेरा 
अपने विशवास का सवेरा 
उठा आपने आगहोश ले आज 
उठा जाग सवेरा हो गया 

कली अंधीयारी रात सो गयी है 
अपने मीठे सपनो मै वो खो गयी 
अब ना सोया रहा उठा जाग
कर ले आपने सपनो को साकार
उठा जाग सवेरा हो गया 

उठा जाग सवेरा हो गया 
आंखें खोल उठा कर देख 
चहों ओर अँधेरा खो गया 
उठा जाग सवेरा हो गया 

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत 

कवी बालकृष्ण डी ध्यानी 
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