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मन तरसे


मन तरसे

मन तरसे
उस की बरशी
ना छुये है कागा
उसकी करछी को 
कैसा घोल मचाय होगा
सारा माल अकेले दबया होगा 
पंडीत की उस करनी को
ना सुने उस की कथनी को 
एक हजार रुपये दंड पायेगा 
अगर यह दक्षीण पहले मील जायेगा 
तब जाकर कागा ये भोग लगयेगा 
देखो कैसी है मीली भगत 
भक्त भी रह गये चकत 
जैसे दक्षीण अदा होई 
काग चुँच भोग पर फ़िदा होई 
कण कण मे ये तु रच गयी 
भास्त्चार मे ये फंस गयी है 
अब ना आत कोई विचार 
कैसे भुलयें ये आत्याचार 
हो गया अब बरम्बार 
एक नही दो नही कई बार कई बार कई बार 
मन तरसे
उस की बरशी को 
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

कवी बालकृष्ण डी ध्यानी 
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