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शब्द

शब्द
अपने शब्दों को बाँधना चाहत हों
गीत के माध्यम से सजना चहता हों
संगीत मीले ना मीले मुझे
अपनी रीत निभाना चाहता हूँ
अपने शब्दों को बाँधना चाहत हों ........

प्रेम की बेबसी को पाना चाहता हों
मीरां बाण बावली सा गाना चाहता हों
श्याम छेडै ना छेडै मुझे ये राधा
जमुना की मोंजों मै उन्हें पाना चाहत हूँ
अपने शब्दों को बाँधना चाहत हों ........

मिथ्या शब्दों को त्यागा ना चाहत हूँ
लोओ की तरंह जलना बुझना चाहता हूँ
मेरी रहा ना देखे कोई इन वीरानो मै अब
कईयूँ की तरह अब खो जाना चाहता हूँ
अपने शब्दों को बाँधना चाहत हों ........

मेरे इस पन को दिवनापन ना समझो
झोंका दिया है मैने अपने आप को इस मै
मुझे तपता होवा तप्तकुदन ना समझो
भुल जाओ मुझ को तुम याद आऊँगा सबको
अपने शब्दों को बाँधना चाहत हों ........

पल पल के बाद पल आऊँगा
तुम्हरे साथ हर पल पाओंगा
श्याद बीखरे शब्दों मै कभी कभी
मै तुम को कंही दीख जऊँगा
अपने शब्दों को बाँधना चाहत हों ........

अपने शब्दों को बाँधना चाहत हों
गीत के माध्यम से सजना चहता हों
संगीत मीले ना मीले मुझे
अपनी रीत निभाना चाहता हूँ
अपने शब्दों को बाँधना चाहत हों ........

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

कवी बालकृष्ण डी ध्यानी
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