ADD

मै अकेला


मै अकेला 

कितने हाथ उठै 
कितने दुयें निकली इन मुख से 
मै सोच था मै अकेला हों 
इस पथ के मील की तरहं 

पर आपकी दुवा का असर 
जीवन काफिला सा सफर 
बहा नदी की तरंह निर्झर 
पतझड़ खिला वो मोसम 

गुल खिला अकेले काँटों संग 
माली नै मुझे कैसे तुड़ा दिया 
बाग़ मै मुझसे कई और भी थै
उनके के लिये ये दिल रो दिया 

छुटा बाग और ओ घर बार 
याद आता मुझे ओ हर बार 
गली बाजार कुचा गुजरा 
वक़त मुझ पर युं गुजरा

आज पड़ा उस मोड़ उस छोड़ 
जैसे मन मै कंही जगी है होड़ 
बीते पन्नो लिखी कभी वो बात
याद आ रही फिर एक बार 

कितने हाथ उठै 
कितने दुयें निकली इन मुख से 
मै सोच था मै अकेला हों 
इस पथ के मील की तरहं 

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत 

कवी बालकृष्ण डी ध्यानी 
Reactions

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ