सवेरा
लो आ गई
नयी प्रभात
चलो उठो मित्रवर
आवाज लगये कोई
देखो ओ रवि पुकारे
सुनहरी कीरणों
को वो बिखरे
असमान को संवारे
एक नयी अंगाडाई
हाथ लिया कलम
करैं कुछ इशारें
कविता के बोल लिया
वृक्ष रह था डोला
अकेला खड प्रतीक्षा मै
पाने को यहाँ भोर
हो रहा अतिभोर
व्यकुल खड इस पार
मन मै आये विचार
प्रेम की परिभाषा
तनिक सरल
तनिक कठोर
राधा और मीरां
के फूटे ये बोल
आयी कैसी भोर
जैसे प्रीतम से मीले
मुझे चाहूं और
हो गयी दर्शन
मेरे मालिक
जब जगी ये भोर
मचा उठा शोर
उठा जगा मित्रवर
आ गई नयी भोर
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
कवी बालकृष्ण डी ध्यानी
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