मन मेरा तन मेर
जब मैने खोजा तन मेरा
तब मन ना था अब मेरा
न जाने कंहाँ खो गया था
ओ साथी ओ हमदम मेरा
जब मैने खोजा तन मेरा ........
दिल की नगरी की वो डगर
ना जाने कंहाँ खो गई मगर
बचैन रहता हों मै अब इधर
मंजील मेरी खोगयी किधर
जब मैने खोजा तन मेरा ........
नयनो का साथ था अब तो
सांसों नै दिया मुझको सहारा
आँसुं से किया जब किनारा
इन पलकों को अब तु उठाना
जब मैने खोजा तन मेरा ........
माथे पर घेरी होई लकीर
पुछ रही आज वो मुझसे
लब खामोश इस बार भी
आँखों क्यों इल्जाम दिया
जब मैने खोजा तन मेरा ........
तनहाई का मंजर था सुहान
गीत गम का क्यों छेड़ दिया
दिल मेरा अब तो बाता दे मुझे
तेरा क्या ठीकान क्या फसना
जब मैने खोजा तन मेरा ........
ओ अब ना रहा मेर ना तेरा
जग जोगी वाला फैर बाबा
दो दिन का बसेरा ये मन मेर
दिल को क्यों चाहे बसेरा तेरा
जब मैने खोजा तन मेरा ........
जब मैने खोजा तन मेरा
तब मन ना था अब मेरा
न जाने कंहाँ खो गया था
ओ साथी ओ हमदम मेरा
जब मैने खोजा तन मेरा ........
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
कवी बालकृष्ण डी ध्यानी
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