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मेर श्रीमती जी


     मेर श्रीमती जी

कण भली लगदी,कैकुण वा सजदी 
मेर श्रीमती जी, मेर धर्मपत्नी जी 

छुयीं छुयीं मा याद वा आंदी 
दोई घड़ी मेर दगडी साथ छुयीं लगान्दी वा 
पीछणे की सब बीती बात बतान्दी वा 
सर रर मेर आंखी भीगे जांदी वा 

कण भली लगदी,कैकुण वा सजदी 
मेर श्रीमती जी, मेर धर्मपत्नी जी 

खडी वहाली तिबारी मा वा 
हेरती दोई आंखी क्या,क्या हेरती सड़की मा वा 
बस की पम पम मा कीले आंखी फर फरंदी वा
कुछ बेल बाद क़ीले उदास हो जांदी वा 

कण भली लगदी,कैकुण वा सजदी 
मेर श्रीमती जी, मेर धर्मपत्नी जी 

म्यार पहाड़ की बेटी ब्वारी
त्यारू याकुल जीवण यख कसैरी सी घरी 
उकाला उन्दारू का पाटा मा पीसु
गढ़ देशा मा बस्यु तेरु च सरू कीसु 

कण भली लगदी,कैकुण वा सजदी 
मेर श्रीमती जी, मेर धर्मपत्नी जी 

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत 

बालकृष्ण डी ध्यानी 
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