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चेतना


चेतना 

हाईकु:-
चख चेतन रस......!!
चेतना ग ई
इंसानियत भी मरी...२

दरवाजे पर मुख खडी
बचे जो दो घड़ी
बोल दे अब तो हरी हरी
चेतना ग ई
इंसानियत भी मरी..२

देखा तमाशा तमश: का
एक वार कसक का
फिर भी ना गई तेरी घड़ी
बोल दे अब तो हरी हरी
चेतना ग ई
इंसानियत भी मरी..२

मरहम मै लिपटी है
इंसानियत जो अब दुबकी है
आयेगी जब घड़ी तुझ पर
अब तो बोल बंदे हरी हरी
चेतना ग ई
इंसानियत भी मरी..२

हाईकु:-
चख चेतन रस......!!
चेतना ग ई
इंसानियत भी मरी...२

आभार 
श्रीमती रेनू मेहरा जी का एक सोच दी ने के लिये 
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत 

बालकृष्ण डी ध्यानी 
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