कब्र
टूटे मोहब्बत की तक़दीर बनाता हों
गुजरे जमाने का फलसफां मै सुनता हों
गुरबातै कब्र पर एक चादर चढ़ दिया
कब्र को मेरी तुने एक माजर बना दिया
सोच सुकन मिलेगा मुझ को जंहा छोड़कर
मेरे इस हजूम मे तुने मेला लागा दिया
रुकसातै बेवफाई मे वफ़ा दिल तुडकर
दिया जला कर उसे रोशन करा दिया
फकीर चोला विरानो की खाक छनता था कभी
फकत अब यंहा उसके लिये हाथ उठाता है कोइ
आसुँ की सीस्कीयाँ सुनाई देती थी जंह
वफ़ाये मोहबत की खुशीयाँ नजर आती वहां
टूटे मोहब्बत की तक़दीर बनाता हों
गुजरे जमाने का फलसफां मै सुनता हों
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
0 टिप्पणियाँ