बाँझ दुःख
कीतनी तडपाती होगी
कीतना उसे सताती
अंतर मन की ये वेदना
हर पल रुलाती होगी...........
श्रण प्रतिश्रण उसकी
ममता भीग जाती होगी
कोख जो सुनी है वो
कील्कारीयाँ सुनाती होगी
हर पल रुलाती होगी ...........
अकेले मै उसे उसकी
ओर याद आती होगी
सहेलीयूँ के बच्चों संग
अपना दर्द भुल जाती होगी
हर पल रुलाती होगी ...........
कभी खुद से कभी खुदा से
इल्तजा तो करती होगी
अंधेरे शून्या उस बिंब को
तो वो आँखों खोजती होगी
हर पल रुलाती होगी ...........
बाँझ दुःख समाज का बंधा है
नर का दोष नारी पर थोपा है
वो एक आहा नहीं भारती
अपने भग्या को ही कोसती है
हर पल रुलाती होगी ...........
कीतनी तडपाती होगी
कीतना उसे सताती
अंतर मन की ये वेदना
हर पल रुलाती होगी...........
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
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