भित्र- भैर
भित्र- भैर करदा रहों
मनखी दगड लड़ादा राहों
कैण …..कैण लगाई ये माया ……२ ये माया
काबै झट उठ्युं काबै झट बैठ्युं
रुँल्युं गड्नीयुन मा काबै ढुंगा फैन्ख्यु
कैण …..कैण ये जी लगाया ……२ ये माया
छुंयी छुंयी मा मी लगीरंयुं
काबै यकुली काबै दकुली मी बच्चान्दी रंयुं
कैण …..कैण ये बोल्या बनायी …..२ ये माया
यख भी देख्याई वख भी देख्याई
आंखी मूंदयाई तब भी देख्याई
कैण …..कैण ये मीथै भरमाया ….२ ये माया
बुरंश दगडी व खीले हिलंश दगडी वा हंसे
प्योंली दगडी वा बाच्चै घुघुती दागडी वा उडै
कैण …..कैण ये सरमाया ….२ ये माया
कखक कखक फिरण लग्युं कुअलण मा मी लुकाण लग्युं
घर-भार छुडी की वींका नवा थै मी रटन लग्युं
कैण …..कैण ये बाण मीथै बीसराया ….२ ये माया
झण भी तु छे ठीक छे
माया दूर भटिक लगायई रोग तिल ये काया
जिकोडी ला फिर खेल खिलाया
ये स्वाणी निर्दई माया …..२ ये माया
भित्र- भैर करदा रहों
मनखी दगड लड़ादा राहों
कैण …..कैण बाटा लगाई ये माया ……२ ये माया
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
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