लालच
देखा दुनिया की गलियारों मै
नचा रहा वो अब घर चोबाराओं मै
इज्जत उछाली उसने अब बीच बाजारों मै
जो छीपी थी कल तक उस चार दीवारों मै
रिश्ते की जोड़ को उसने जो ऐसा तुड़ा
दिल के उस टुकडे को कंही का ना उसने छुड़ा
माँ पिताजी का आँखों नूर था जो अब तक
उनकी रोशनी को उसने कैसे अंधकार मै छुड़ा
नये रिश्ते की थी अगवाई बाजी जब शहनाई थी
लाल रंग के जोड़े मै एक जुदाई इस घर मै आयी थी
कर दिया ऐसा जादु किसी का ना रहा अब काबू
कोंन माईया कोंन बाबा अप शब्दों का बना वो साधु
रिश्ता था जो बेटे का वो देखो ताड़ ताड़ होआ
घुशो और लातों से उस पर कलीयुग सवार होआ
माना ना वो मन मर्जी खुदगर्जी नारी के लिये लाचार होआ
अब देखो हरा घर घर मै किस्सा अब ये सारे आम होआ
देखा दुनिया की गलियारों मै
नचा रहा वो अब घर चोबाराओं मै
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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