कल
देख देख का फर्क है
देख रेख का फर्क है
जो है माध्यम या तेज
सोच समझ का फर्क है
मेज सेज पर फर्क है
उस पर अक्ल का दरक है
साफ सुथरी क्या परत है
जो दौड़ रही लगी शर्त है
कोई बड़ा कोई छोटा है यंह
समाज के ताज का फर्क है
अंतर का जंतर यंहा
धर्म से छुटा एक धर्म है
गिलास आधा भरा होआ
या फिर आधा वो खाली है
दुर बागा से वो पुष्प टुटा
क्यों दुखी होआ वो माली है
समय की छलनी है खाली
क्या समय अब बीता कल है
देख देख का फर्क है
देख रेख का फर्क है
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
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