ADD

कल


कल 

देख देख का फर्क है 
देख रेख का फर्क है 

जो है माध्यम या तेज 
सोच समझ का फर्क है 

मेज सेज पर फर्क है 
उस पर अक्ल का दरक है 

साफ सुथरी क्या परत है 
जो दौड़ रही लगी शर्त है 

कोई बड़ा कोई छोटा है यंह 
समाज के ताज का फर्क है 

अंतर का जंतर यंहा 
धर्म से छुटा एक धर्म है 

गिलास आधा भरा होआ 
या फिर आधा वो खाली है 

दुर बागा से वो पुष्प टुटा 
क्यों दुखी होआ वो माली है 

समय की छलनी है खाली 
क्या समय अब बीता कल है 

देख देख का फर्क है 
देख रेख का फर्क है 

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत 

बालकृष्ण डी ध्यानी 
Reactions

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ