सोया समाज
कविता को खोया पाया
समाज मै उसे सोया पाया
चीखती रही चिलाती रही
दुःख-दर्द से वो कहराती रही
भुख के फंदे मै झूली सखी
आपनो से ही रूठी कभी
शहरों की राहों मै छुड़ा पाया
गावों के खेतों मै बोया पाया
महंगाई संग नाचती रही
गरीबी का मातम बनती रही
देहज के बंधन मै बंधी वो
सती संग चिता चड़ी वो
रही चीखती चिलाती वो
एक आह बस अब गाती वो
कविता को खोया पाया
समाज मै उसे सोया पाया
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
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