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प्रत्यक्ष


प्रत्यक्ष

प्रत्यक्ष को प्रमाण की 
आवश्यकता नहीं होती 
झूठ को धार नहीं होती 
सच्चाई अजर अमर है 
रहती है भले अंधेरे मे
कुछ समय के लिये फिर भी 
पर उजाले आने के बाद 
देर पर अंधेर नहीं होती 
प्रत्यक्ष को प्रमाण की 
आवश्यकता नहीं होती.........

अकेले रहती है सदा वो
कभी मुखागार नहीं होती 
चलती रहती अपनी दिशा मे 
कभी सीमा पार नहीं होती 
सच्चाई सच्चाई होती है 
उसकी कंही बात नहीं होती है 
बस दिल की आँखों से बस
चुपके से वो बायाँ होती है 
प्रत्यक्ष को प्रमाण की 
आवश्यकता नहीं होती........

असत्य रहता है खुलकर 
एक मे एक जुड़ जाता है 
जाना चहता वो दूर कंही 
बीच मे ठोकर वो खाता है 
ढोल नगाडा ले घुमता है 
अपने सर पर जा फुटता है 
अंतं समय मै देखो वो 
अकेले ही वो जीता है 
प्रत्यक्ष को प्रमाण की 
आवश्यकता नहीं होती........

रहती है आँखों के सामने 
वो ओझल नहीं होती 
लेती है इतने इन्तीहान 
जींदगी के साथ नहीं होती 
दुःख दर्द ही लेकर आती है 
जीगर के पार नहीं होती 
सत्य असत्य के बाजार मे 
बस एक चीज नीलम होती है 
प्रत्यक्ष को प्रमाण की 
आवश्यकता नहीं होती........

उजाले की चाह मे चलकर 
अँधेरा से हार नहीं होती 
गंदी गलियों मे घुमती रहती है 
खुशबु गार हवों से बात नहीं होती 
सत्य असत्य का चक्कर मे 
आते हैं कितने ही चक्कर 
पर उन की अकेले बात नहीं होती 
बस इमान की ही चलती है 
सत्यवादी हरिश्चन्द्र राजा की 
भी यंहा सखा नहीं बचती 
प्रत्यक्ष को प्रमाण की 
आवश्यकता नहीं होती........ 

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com 
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

बालकृष्ण डी ध्यानी
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