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बस राही की



बस राही की 

बस राही की तरंह
रुका कुछ वकत इस तरहां
और आगे की राह पर चल पड़ा
कुछ काहा कुछ सुना
और वो होलै से मुस्कुरा दिया
बस राही की तरंह ...............

राह पर उडती धुल की तरंह
सा मै ठगा का ठगा राहा
एक एक कण उस धुल के उड़े इस तरंह
और मै बस देखता ही रहा
बस राही की तरंह ...............

राह पर बने पद चिन्हों पर मै चलता राहा
एक नयी मंजील को मै खोजता राहा
गम और खुशी के फर्क को बस मै
महसुस मात्र ही करता राहा
बस राही की तरंह ...............

राह मै कभी सवेरा आया तो कभी आयी रात
कभी भरी दोपहरी से तपा मै
तो कभी संध्या से जा मै मिला
बस प्रकाशा और अंधकार मुझसे खेलता राहा
बस राही की तरंह ...............

नदी के कल कल धार सा बहता राहा
पल के बाद पल सागर से मिलता राहा
मै जीवन नमका नैया मै सुख-दुःख लेकर
बीच भंवर मै अकेले ही वो नैया खैवियांता राहा
बस राही की तरंह ...............

पर आज भी राहा मै राही की तरंह
वकत की खोज के पद चिन्ह बनता चला
अगर कभी कोई राही आ जाये भटकर
मेरी तरंह खोजने एक नयी मंजील
बस राही की तरंह ...............

बस राही की तरंह
रुका कुछ वकत इस तरहां
और आगे की राह पर चल पड़ा
कुछ काहा कुछ सुना
और वो होलै से मुस्कुरा दिया
बस राही की तरंह ...............

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

बालकृष्ण डी ध्यानी
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