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बैठा रहा

बैठा रहा

मै बैठा रहा
बैठा का बैठा रहा
सब चलता रहा
मै देखता रहा
आँखों से अपने
दिल मै झाँखता रहा
मन बस कहता रहा
कानों से सुनता रहा
मुख से मौन रहा
पर मै बैठा रहा ............................

अंधकार मुझे समझता रहा
उजाला मुझे याद दिलता रहा
मौसम भीगता सुखता रहा
हवाओं का शोर गाता रहा
सन्नटे की खामोशी चीरती रही
दर्द की जुबान खुलती रही
आँसुं चुप चाप रोते रहे
खुने नस्तर चुबोतै रहे
महौल को मै बिगड़ता रहा
अपने आप को बहलता रहा
पर मै बैठा रहा ............................

जाम पर जाम युं चलता रहा
मैखाना युं ही सजता रहा
कभी पैमाना छलका कभी मै छलका
मदहोशी मै बस खुद को खोता रहा
नशे मै नशा का दौर चलता रहा
अपनी नाकामी जश्न मानता रहा
अपने जीवन को लुटाता रहा
गम मै ही गम को खुशी समझता रहा
अपनों से मै इस तरहं दुर होता रहा
जमीर मेरा युं ही सोता रहा
पर मै बैठा रहा ............................

मै बैठा रहा
बैठा का बैठा रहा
सब चलता रहा
मै देखता रहा
आँखों से अपने
दिल मै झाँखता रहा
मन बस कहता रहा
कानों से सुनता रहा
मुख से मौन रहा
पर मै बैठा रहा ............................

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

बालकृष्ण डी ध्यानी
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