जी को रैबार
भरमंड ज्वार आई
खुद ओंकी दगड दगडी लाई
बीता उंण बातों की
बीता उंण दीण रातों की
रुलैगे रुलैगे ऐ अन्ख्न्युं थै जीकोडी मेरी
भरमंड ज्वार आई
खुद ओंकी दगड दगडी लाई
रुलैगे रुलैगे ऐ अन्ख्न्युं थै जीकोडी मेरी
ओंकी खुद रहैन्दी दगडी सदनी
आज किले आणी वा यकुली सी
याद ओंकी अंद आज भर भोरीकी
दवाई मा लगी माया टक टाकोरीकी
भरमंड ज्वार आई
खुद ओंकी दगड दगडी लाई
रुलैगे रुलैगे ऐ अन्ख्न्युं थै जीकोडी मेरी
कोणीच आज साथ कपाल
मसलाणा को वों का हाथ
दोई छुंयीं वा माया म्यार स्वामी की
को लगालु मेरा साथ आज
भरमंड ज्वार आई
खुद ओंकी दगड दगडी लाई
रुलैगे रुलैगे ऐ अन्ख्न्युं थै जीकोडी मेरी
साथ सदनी तुम रहंदा स्वामी
णा होंदी याणी कभी भी ऐ बात
तुम च मेर संजीवनी जीवन की
तुम दगडी च बस्युं मेरु प्राण
भरमंड ज्वार आई
खुद ओंकी दगड दगडी लाई
रुलैगे रुलैगे ऐ अन्ख्न्युं थै जीकोडी मेरी
च्खुला हेरे दादा च्खुला
भुली हीलंसा घुघूती मेरी
भेजी दे तेर दादा थै मेरु रैबार
तुम्हारी जी पडी च बीमार
भरमंड ज्वार आई
खुद ओंकी दगड दगडी लाई
रुलैगे रुलैगे ऐ अन्ख्न्युं थै जीकोडी मेरी
भरमंड ज्वार आई
खुद ओंकी दगड दगडी लाई
बीता उंण बातों की
बीता उंण दीण रातों की
रुलैगे रुलैगे ऐ अन्ख्न्युं थै जीकोडी मेरी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
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