गरीबी
गरीबी मार गयी
जींदा था कभी मेरे साथ वो
वो भी अब हार गयी
मंहगाई के चूल्हे पर वो वार गयी
सात फेरों पर भी वो मात दे गयी
गरीबी मार गयी ....................
राहा पर पडी धुल थी
अब उसे भी अब उड़ाले गयी
गुल तो मुरझा गया यूँ ही सनम
काँटों को भी वो देखो चुरा गयी
महीने हफ्ते अब हार श्नण रोला गयी
गरीबी मार गयी ....................
चलती थी कभी वो दूर कंही
अब इतने पास वो देखो आ गयी
पैजाम बैठाकर बैठ था कभी शाम को
अब मेरी निकार भी वो उतार गयी
शर्म थी कभी मुझे ही अब वो उत्तार गयी
गरीबी मार गयी ....................
आँखों सै अब वो चाट गयी
एक पैंसा दो पैसा चवनी भुला गयी
दल चावल रोटी को पुकारा गयी
बस भुके पेट अब वो मुझे सुला गयी
गरीबी अमीरी से अब हार गयी
गरीबी मार गयी ....................
गरीबी मार गयी
जींदा था कभी मेरे साथ वो
वो भी अब हार गयी
मंहगाई के चूल्हे पर वो वार गयी
सात फेरों पर भी वो मात दे गयी
गरीबी मार गयी ....................
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
0 टिप्पणियाँ