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ऊँचा अकाशा


ऊँचा अकाशा 

सरग देखी ऐ ऊँचा अकाशा 
भीर भीर गै ऐ मेरु माथा 
लगी अब मी थै पाणी की प्यासा 
बटा भरी दे दै पाणी ऐ माता 
कब जुना की प्यास भुझाली हे विधाता 
सरग देखी ऐ ऊँचा अकाशा ......................

थंडू मीठू पाणी मेर गढ़देश को 
अब प्यास बुझली क्या मेर माता 
तिसलू शरीर तिशलु पराण
वख घाम भातैक ध्याड़ी कैकी मी आणु 
थ्क्युन्चुं मी अब बल सुस्ताणु 
सरग देखी ऐ ऊँचा अकाशा ......................

जाखा देख वख बांज पड़यूँच
क्या पुंगडा क्या डंडा क्या घारा
गढ़देशा लगणु आज तिशालु
गड्नीयाँ रुलाँ सुखी गेंणी हे सारु 
पाणी की गठरी कब खुलेणी 
सरग देखी ऐ ऊँचा अकाशा ......................

भुखी तीसी मेर लादुऔडा 
कख्क भरण अब मील जर मील सोची 
ये सुच्यांण सुच्यांण मा सारी 
उमरी ईणी ही चली गईणी 
मी दोई घोंट पाणी को शांत णी पीणी
सरग देखी ऐ ऊँचा अकाशा ......................

सरग देखी ऐ ऊँचा अकाशा 
भीर भीर गै ऐ मेरु माथा 
लगी अब मी थै पाणी की प्यासा 
बटा भरी दे दै पाणी ऐ माता 
कब जुना की प्यास भुझाली हे विधाता 
सरग देखी ऐ ऊँचा अकाशा ......................

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत 

बालकृष्ण डी ध्यानी
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