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मेरी कलम


मेरी कलम 

मै चुप चाप 
रहता हों मगर 
मेरी कलम बोलती रही 
मेरी भावना 
मेरे पन्नों मै बहती रही 
मै चुप चाप 
रहता हों मगर .......................

नदी के बहाव सी 
सुख दुःख दो छोर कटती रही 
उमंगों की लहर बनकर 
मेरी कवितों मै उभरती रही 
मै चुप चाप 
रहता हों मगर ..............................

उन तरंगों को साथ ले
नये मार्ग पर वो बढती रही 
सागर मै भी समाकर 
वो अपना अस्तित्व बचती रही 
मै चुप चाप 
रहता हों मगर ..............................

खुशी गम के थपेड़ों के साथ साथ 
किनारे पर आ आकर मचलती रही 
नये मंजिलों के मक़ाम पाने सबको 
साथ ले लेकर आगे वो बढती रही 
मै चुप चाप 
रहता हों मगर .............................. 

वा हर रोज जंग लडती रही 
कभी रोयी अकेली अकेली 
कभी साथ साथ वो हंसती रही 
अपना दर्द वो छुपाती रही 
ओरों का हौस्ला बढती रही 
मै चुप चाप 
रहता हों मगर .............................. 

मै चुप चाप 
रहता हों मगर 
मेरी कलम बोलती रही 
मेरी भवना 
मेरे पन्नों मै बहती रही 
मै चुप चाप 
रहता हों मगर .......................

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

बालकृष्ण डी ध्यानी
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