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अधूरी राह के राही


अधूरी राह के राही 

एक राह पर मै था
एक राह पर वो था 
चले जा रहै दोनों कंही 
कौन सा वो मोड़ था 
एक राह...............

राह बनी थी वो सबके लिये 
चले सब अपने अपने लिये 
मन बस देखो चोर था 
उसका ही मचा शोर था 
एक राह...............

अधूरी राह के राही 
सबके सब यंहा पर 
मंजील किधर थी तेरी 
ओर तेरा ध्यानं किधर ओर था 
एक राह...............

आते जाते रहतें हैं 
मुसफ़िर इस राहा पर 
मंजील पर बताओ 
कौन पहुंचा वो कौन था 
एक राह...............

खीचां चला जाता है 
पल उस पल पल के लिये 
इंसान नहीं समझ पाता
आपने उस कल के लिये 
एक राह...............

एक राह पर मै था
एक राह पर वो था 
चले जा रहै दोनों कंही 
कौन सा वो मोड़ था 
एक राह...............

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत 

बालकृष्ण डी ध्यानी
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