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व्यस्थता


व्यस्थता 

दुनिया की व्यस्थता देख 
अपने पर मै चौंक 
रिश्ता जो आज कल का 
देखो कंहा अब खोया 

समय को पकड़ना चाह 
साथ अपनों का छुट 
बारी बारी देखो वो धागा
अब पीछे कंहा छुट

सुबह रात मै फर्क है 
ना जाने क्या ऐ दर्द है
क्यों ?दौड राहा हों मै इस तरह 
जाने इसका क्या मर्ज है 

सब बिखरे बिखरे लगे 
अपने आप मै टुकडे लगे 
कटे अपने अपने मन से 
व्यस्थता घिरे अपने तन से 

दुनिया की व्यस्थता देख 
अपने पर मै चौंक 
रिश्ता जो आज कल का 
देखो कंहा अब खोया 

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

बालकृष्ण डी ध्यानी
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