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घाव मेरे


घाव मेरे 

अनगनीत घाव मेरे 
दामन पर अब रोज लगे 
एक एक कर सब 
अपने मुझको छोड़ चले 
अनगनीत घाव मेरे .........

पहाड़ आज खोया 
आपना कोई आज रोया 
खोज ने निकला कोई कंही 
बस अपना साया छोड़ा 
अनगनीत घाव मेरे .........

चलते कदम उस पर
आपस मै अब अपने से कहे 
कितने गये और कितने जायेंगे 
इस धरा से यूँ टूटकर 
अनगनीत घाव मेरे .........

व्यथीथ्त होआ हों मै 
छलीत होआ हो अपनों से ही
गलानी से गलीत होआ हों मै 
पल्यान की इन गलीयुं से 
अनगनीत घाव मेरे .........

खंड ना बन सका 
अब अपने खंड वासीयों का 
पहाड़ अब छोड़ राहा हों 
दर्द खुद अब झेल राहा हों 
अनगनीत घाव मेरे .........

अनगनीत घाव मेरे 
दामन पर अब रोज लगे 
एक एक कर सब 
अपने मुझ को छोड़ चले 
अनगनीत घाव मेरे .........

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत 

बालकृष्ण डी ध्यानी
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