ऐ जो कहनी है
कहनी है बहुँत पुरानी है
कथा की बस रवानी है
बिखरी पडी है यंहा वंहा
उठकर बस सुनानी है
कड़ीयों की जो रिवायत है
ऐ जो कहनी है
कभी नदी कभी सागर
कभी भुमी कभी परबत
कभी आज कभी इतिहास
यंह बसी इसकी छाप है
दिल को बस छु जानी है
ऐ जो कहनी है
कंही कहानी, कथा, कथानक
मंज़िल, वृत्तांत, फसाना
कंही अफ़साना, उपकथा
लघु उपन्यास कल्पना, गपोड़ा
बस इस से आगे अब थोड़ा बढ
ऐ जो कहनी है
अक्षर कलम पन्नों का मेल
इनके मिलाप बनता है खेल
दुःख सुख का अनोखा मेल
पात्रों के बीच ही चलीती ऐ रेल
चल आगे बिकना जाये तेल
ऐ जो कहनी है
अपनी कभी तो कभी परायी
कभी अपनों से सुनी कभी दूजे से
लगी ना कभी वो परायी है
अनकही है वो अनजानी है
सतत बहती रवानी है
ऐ जो कहनी है
सब कुछ इन पर निर्भर है
छत का वो रोशनदान है
खिड़की कभी कभी वो दरवाज
मेज पर पडी वो किताब है
असमान की तरह खुली है
ऐ जो कहनी है
कहनी है बहुँत पुरानी है
कथा की बस रवानी है
बिखरी पडी है यंहा वंहा
उठकर बस सुनानी है
कड़ीयों की जो रिवायत है
ऐ जो कहनी है
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
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