खुद
खुद को टोकता रहा
खुद को ही रोकता है
अपनों के लिये मै
बस यूँ ही सोचता रहा
खुद को टोकता रहा ................
कुछ चाहा मैने
उसे अनचाहा कर दिया
उनके लिये ही मैने
इस मन को तोड़ दिया
खुद को टोकता रहा ................
ख़याल उनका ही
अब मुझे सताता रहा
दो निवाले को मेरे
मै एक निवाला करता रहा
खुद को टोकता रहा ................
उम्र चली गयी मेरी
बस अब उनके लिये
इस बुडापे मे मेरे
मै उनको बोझ लगता रहा
खुद को टोकता रहा ................
अब भी मै उनके लिये
अपने आँसूं छुपता रहा
खुद ही खुद मै देखो
मै खुद को ही खुद से खोता रहा
खुद को टोकता रहा ................
खुद को टोकता रहा
खुद को ही रोकता है
अपनों के लिये मै
बस यूँ ही सोचता रहा
खुद को टोकता रहा ................
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
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