मै
देख गिरा इस तरंह
उठना सकूं गिरने पर
झोंका उड़ा ले गया
आपना मुझको कहकर
देख गिरा इस तरंह .........
उड़ता उड़ता गया
आकाश उस नभ पर
कभी जल कभी थल
कभी बादलों से घिरकर
देख गिरा इस तरंह .........
मचल मचल कर
उत्साहीत पल पर
घुलमील चला किस पथ पर
बरखा गिरी तन पर
देख गिरा इस तरंह .........
बूंदों की बूंदा बांदी में
उड़ गया हों उस आँधी में
छुटा डाल से इस तरंह
खो गया हो उस रवानी में
देख गिरा इस तरंह .........
देख गिरा इस तरंह
उठना सकूं गिरने पर
झोंका उड़ा ले गया
आपना मुझको कहकर
देख गिरा इस तरंह .........
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
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