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साँस



साँस 

साँस कुछ आज इस तरह से उखड़ी 
अपनी अवान जवान मे फेफड़ों जा सीकोडी 
साँस कुछ आज ..............

वो भी राहा निहरती रही बेमानी सी अकेली 
टूट टूटकर वो बाहों को अपनी फैलाती रही 
साँस कुछ आज ..............

एक टक दूर तक वो बस यूँ ही निहरती रही 
आंखों से साँसु की ऐ लड़ी बस झूलती रही 
साँस कुछ आज ..............

तडपती रही चुपचाप अनजानी मूरत बनकर 
खोजती रही सूरत पहचानी सी बदली बनकर 
साँस कुछ आज ..............

साँस की आँच से यौवन तप सा गया 
एक रस्सी थी आस की अब झुलस सी गयी 
साँस कुछ आज ..............

साँस कुछ आज इस तरह से उखड़ी 
अपनी अवान जवान मे फेफड़ों जा सीकोडी 
साँस कुछ आज ..............

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत 

बालकृष्ण डी ध्यानी
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