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आँखों ने चित्र




आँखों ने चित्र

उभर उभर कर आँखों ने चित्र उसका बनया 
उभर उभर कर मन मे ख़याल उसका ही आया 
अंधेरों में बातें की मैंने उससे उजालों मैने उसको खोया पाया

रात मै पलंग पर लेटे लेटे एक टक,पखों के घुमाओ मे घिरा उसको पाया 
उन रेखोंओं मे फंसा मै इस तरह नींद चैन बस अब यंहा खोया पाया 
करवटों की कहनी बनी अब भूली होयी दास्ताँ मेरी 

अकेली वो अकेला मै बीच दरस ओर दर्पण तडप ओर तडपन
अश्रु धारा तेरे नाम पर अर्पण यादों का ऐ चमन बस तेरे बिन 
चलते रहे उन राहों को जिनका ना कोई मंजील 

धूआँ उड़ा कुछ इस तरंह जीवन का चक्रहवीयु में मै जा फंसा 
कोशीश की थी उसको मैंने तोड़ने का बस दिल वंहा पर छुटा
झूठा झूठ कह रहें है सभी मुझे वक्त ने ना दिया मुझको मौका 

उभर उभर कर आँखों ने चित्र उसका बनया 
उभर उभर कर मन मे ख़याल उसका ही आया 
अंधेरों में बातें की मैंने उससे उजालों मैने उसको खोया पाया

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत 

बालकृष्ण डी ध्यानी
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