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गुलशन


गुलशन

एक मै एक उसका साथ 
चलीं जा रही है दूर वो क़दमों की आहट
बस मै ही चला साथ साथ उसके 
कर के दिल के गुलशन को यूँ बरर्बाद

खिला था गुल कभी इस गुलशन बाग़ 
रह गयी बस अब उसकी काँटों की ही याद 
पतझड़ वो मातम की झड़ी बरसात 
रह रहकर अब भी आती है उसकी याद 

गुलशन उसका खिलता मुस्कुराता रहे
खूने खंजर इस दिल को बस चुभता रहे 
खराश ना आये उसे कभी मन तन पर 
दिल मेर जख्मी हो बार बार गाता रहे 

गर छुड दूँ इस तरंह से अकेला ऐ गुलशन
फिर कैसे खिलेगा यंहा प्रेम गुल ऐ चमन 
कोई तो मसलेगा मुझे बार बार यंहा ऐसे 
एक तो होगा जो मस्तिष्क मुझे सजायेगा 

एक मै एक उसका साथ 
चलीं जा रही है दूर वो क़दमों की आहट
बस मै ही चला साथ साथ उसके 
कर के दिल के गुलशन को यूँ बरर्बाद

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत 

बालकृष्ण डी ध्यानी
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