शब्द जब
शब्द जब उठा खड़ा होआ
ध्वनि घोष का शंक नाद होआ
ढोल पीट पीट कर धूम
कोलाहल अब सरोबोर होआ
शब्द जब उठा खड़ा होआ ..............
स्वन साथ शब्द का
अस्तित्व के साथ बोधा होआ
शब्द अपने आप से बोर होआ
चक्षु आवाज से मजबूर शब्द
शब्द जब उठा खड़ा होआ ..............
कर्ण मे सुपेरीत शब्द
मस्तिष्क दिल पर बोल होआ
मुख से निकला वो शब्द
तब क्रांती का उद्घघोष होआ
शब्द जब उठा खड़ा होआ ..............
खल दल बल हीन जब शब्द
विहरीत और विहीन होआ
बिना ध्वनी का शून्या गुंजा
शांता था बस अब वो निशब्द होआ
शब्द जब उठा खड़ा होआ ..............
शब्द जब उठा खड़ा होआ
ध्वनि घोष का शंक नाद होआ
ढोल पीट पीट कर धूम
कोलाहल अब सरोबोर होआ
शब्द जब उठा खड़ा होआ ..............
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
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