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एक ओर क्रान्ती


एक ओर क्रान्ती

एक आन्दोलन और होना चाहीये 
मद मस्त घटाओं का मोड़ा होना चाहीये 
एक आन्दोलन और होना चाहीये ......

खल बल दल के साथ अहिंसा के पल के साथ 
जोश जूनून उमंग के साथ पूरा जोर होना चाहीये 
एक आन्दोलन और होना चाहीये ......

पहाड़ के लिये उसके लूटे अधिकार के लिये 
गैरसैण को भूले उन आपनो को जगाने के लिये 
एक आन्दोलन और होना चाहीये ......

क्रान्ती की मशाल फिर अपनी हाथ में थाम
चल फिर कदम से कदमताल कर कुच कर 
एक आन्दोलन और होना चाहीये ......

मट्टी फिर पुकार रही पहाड़ कर राह सिंहनाद 
उठो पहाड़ के वीर सपूतों करो दिल्ली की ओर प्रस्थान 
एक आन्दोलन और होना चाहीये ......

आन है हमे अपने पूर्वजों की क्रान्ती के उस सपने की 
रक्त रंजित हो जायेंगे गैरसैण अब हम राजधानी बनायेंगे 
एक आन्दोलन और होना चाहीये ......

सोच ना तो ,बहुत सोच लिया पहड़ों में तो बहुत सो लिया 
जगा तेरी जागने की बारी आयी है चल निकल पड़ क्रान्ती पथ पर 
एक आन्दोलन और होना चाहीये ......

एक आन्दोलन और होना चाहीये 
मद मस्त घटाओं का मोड़ा होना चाहीये 
एक आन्दोलन और होना चाहीये ......

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

बालकृष्ण डी ध्यानी
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