यूँ ही टूटकर
यूँ ही टूट- टूटकर के गिरा वो आस ही पास
अरमानो का अधूरा अधूरा सा वो साथ ...२
अश्क से भीगी थी वो रात वो बात
अल्फ़ाजा का कौन देगा यंहा साथ .....२
यूँ ही टूटकर.......
उक़ूबत का समा जल जलकर अब बुझने लगा
उजाड़ बंजर पर वो हल चलने लगा ..२
रह रहकर उफ़्क पर उम्मीद से बाकी रही
उरूज पर उरियां का उबाल आता राहा ..२
यूँ ही टूटकर......
एहतियाज ऐ ऐयाश ऐहतमाम मै
इज़्ज़त का इज़्हार उनसे हो ना सका..२
घुंगुर यूँ ही बजते रहे इक़रार मेरा नाचता रहा
इत्तिका इत्तिफ़ाक़ पर गर यकीन आता राह..२
यूँ ही टूटकर......
यूँ ही टूट- टूटकर के गिरा वो आस ही पास
अरमानो का अधूरा अधूरा सा वो साथ ...२
अश्क से भीगी थी वो रात वो बात
अल्फ़ाजा का कौन देगा यंहा साथ .....२
यूँ ही टूटकर.......
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
0 टिप्पणियाँ