"पुरानी किताबों का ढेर"
क्या करे ....कोई ना सुने मन की
बता दिल क्या करे .......
धड़कती है ...धडकन शब्द सब मौन
बता दिल क्या करे .......
रचनाओं के बोल कबाड़ी की गठरी खोल
बता दिल क्या करे .......
कविता छापी अब चुपचाप सुस्ता रही
बता दिल क्या करे .......
मुँह बाहर की ओर अंदर क्यों शोर
बता दिल क्या करे .......
ज्ञान की जलती बाती के नीचे कोइ ओर
बता दिल क्या करे .......
रचनाकरों के रचनाओं का वो छोर
बता दिल क्या करे .......
ढेर ही ढेर है पडा अब तेरे चाहों ओर
बता दिल क्या करे .......
क्या करे ....कोई ना सुने मन की
बता दिल क्या करे .......
धड़कती है ...धडकन शब्द सब मौन
बता दिल क्या करे .......
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
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