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छुटूयाँ वो धागा


छुटूयाँ वो धागा 

देखा कंन छुटूयाँ वो धागा 
कंन तोडीकी वो भागा 

वा वो उकाली का बाटा
अपरा गों-गोल्युं थै तू लाटा

बालपन वो लाटूपंन 
गोरंदों चराणी वा बंसरी की धुन 

रुक ना पै बाबा बोई रुण 
आँखी रुण दी रै बस रुणझुण रुणझुण

क्या मिलै तैथै रै हमरु गुण
अपरी ही माटू से किलैगै छोरा फूंड़

बिता दीण बुलांदा रैदा हम थै बेटा 
वो खुद का धागों हमूण ऊंण बुन 

देखा कंन छुटूयाँ वो धागा 
कंन तोडीकी वो भागा 

एक उत्तराखंडी 

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत 

बालकृष्ण डी ध्यानी
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