बेचा खुद को मै बिका नहीं
बंद आँखों ने देख लिया
जो खुली आँखों से दिखा नहीं
मन ने मन को फेर लिया
बीच बजार जब मै बिका नहीं
बंद आँखों ने देख लिया …..
खड़ा था अकेला ही
ओर अकेला ही मै खड़ा रहा
आये गये कितने वंहा पर
मोल मेरे वंहा लगा नहीं
बंद आँखों ने देख लिया …..
बिन बिका ही मै रहा
मन ने तन पर कुछ अर्पित किया नहीं
दर्पण में भी छवि दिखी नहीं
मै वंहा पर खड़ा था ही नहीं
बंद आँखों ने देख लिया …..
यूँ ही खोया खोया था मै
अपने अपर पर ही सोया था मै
जगा ना था मै कभी
सोया था क्या पर सोया नही
बंद आँखों ने देख लिया …..
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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सोमवार ०८ /१० /१२ दोपहरी १३ :०२
बालकृष्ण डी ध्यानी
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