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बड़ती वहाली


बड़ती वहाली 

ऐ परदेशी भुल्हा 
तू हम थै किले भुला 
पछण दू भी णी अब 
हम थै जणदू भी णी 
ऐ परदेशी भुल्हा 

खैणी कमाणी होगै बदली 
रैण सैण मा भी होगै बडती 
तेरी नजर किले व्हैगै सस्ती 
अपर बिसरी परदेशा की बस्ती 


ऐ परदेशी भुल्हा 
तू हम थै किले भुला 
पछण दू भी णी अब 
हम थै जणदू भी णी 
ऐ परदेशी भुल्हा 



शान बाण तेरी टाणा टण छे 
अन बाण मा भी तान तन 
टक्कों की बरखा होणी अब खण खन 
किस्सा मा अब पाउंड डॉलर बजण छमा छम 
ऐ परदेशी भुल्हा 


ऐ परदेशी भुल्हा 
तू हम थै किले भुला 
पछण दू भी णी अब 
हम थै जणदू भी णी 
ऐ परदेशी भुल्हा 

अपरू परायु कु फरक कैगै माया को झामम झाल 
परदेशी भुलाह मदमस्त व्हैगै कण आयुंच अब ये काल 
देर सबैर तै भी समझ आली 
जब अहंकार कु पर्दा सरकी जोला 


ऐ परदेशी भुल्हा 
तू हम थै किले भुला 
पछण दू भी णी अब 
हम थै जणदू भी णी 
ऐ परदेशी भुल्हा 

बाटा मा बैठयूँचा भुलाह जी 
अब भी तब भी कोई करणु व्हालो इन्जार 
वैकी भी अब तब आस पूरी वहली 
गडदेश मा जब तेरी बड़ती वहली 

ऐ परदेशी भुल्हा 
तू हम थै किले भुला 
पछण दू भी णी अब 
हम थै जणदू भी णी 
ऐ परदेशी भुल्हा 

एक उत्तराखंडी 

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत 

बालकृष्ण डी ध्यानी
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