हवाओं में पन्ने
हवाओं में उड़ते पन्ने हैं
जीवन के कुछ वो सपने हैं
टूटे कुछ कुछ जुड़े हैं
कलम ओर पेज से बंधे हैं
लिखते कभी मैंने
हवाओं में उड़ते पन्ने हैं ................
यंही अटके होंगे
जो कभी मेरे संग भटके होंगे
गिरे होंगे कंही चौराहों में
मूंगफली चने के साथ
लिखते कभी मैंने
लिपटे दानों संग पन्ने है.....................
देख वो भी तो एक पन्ना
दिमाग उसका है सना
रहता है अलमारी में
धुल से भरी उस क्यारी में
लिखते कभी मैंने
धुल से लिपटे वो पन्ने है .....................
मेरे पन्नों का ना मोल दू
शब्दों को आँखों का रूप दो
पड़ लो एक बार अब तो
फिर चाहे मोड़कर फेंक दो
लिखते कभी मैंने
भींचकर पड़े वो पन्ने है .....................
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
0 टिप्पणियाँ