ADD

देखा गढ़ की लील


देखा गढ़ की लील

देखा गढ़ की लील
पैल जंन छे तन ही वा रहाई
बल टस से मस ना वाहाई
ओर बड़ बड़ ही ग्याई 
पलायन समयसा तन ही रहई
बोलों हमोल क्या पाई बस खोई 
देखा गढ़ की लील

एक शीश यख एक शीश वख ग्याई
आपरा आपरा मा ल्ग्याँ छा सब का सब 
कुर्ती सुलार छोड़ टी शर्ट जींस पेंट आयी 
लम्बू हाथ को बिलोज क्ख्क हर्ची ग्याई
उत्तराँचल बस उत्तराखंड वहाई
देहरदुन गैरसैण बीचा राजधानी पीस ग्याई 
बोलों हमोल क्या पाई बस खोई 
देखा गढ़ की की लील

क्दगा बरस अब बल इनी गयाई
मेरे मया बोली गढ़वाली भाषा नी बाण पाई 
शिक्षा का दीक्षा अब भिक ग्याई
माटा कूड़ा सिमेंटों कूड़ा नी लुट दयाई 
योजन बणी अपरमपार पार नी वहई 
हमारों ना वींकी मलाई खै दयाई
बोलों हमोल क्या पाई बस खोई 
देखा गढ़ की की लील

क्ख्क जली मी क्खाक खदे दयाई
क्ख्क दुरु दगड़ा मी बोग ग्याई 
कखक रेत भोरी मील कखक लैट ग्याई 
कखक बदल फटी सरकी रूडी गयाई
क्ख्क पुंगडा बंजा पड्यां पाणी सुख ग्याई 
कखक प्रगती दगड़ा मी लुट दयाई 
क्ख्क अपरा झोल्हा पकड़ मी थै छोड़ ग्याई 
बोलों हमोल क्या पाई बस खोई 
देखा गढ़ की लील

देखा गढ़ की लील
पैल जंन छे तन ही वा रहाई
बल टस से मस ना वाहाई
ओर बड़ बड़ ही ग्याई 
पलायन समयसा तन ही रहई
बोलों हमोल क्या पाई बस खोई 
देखा गढ़ की लील

एक उत्तराखंडी 

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत 

बालकृष्ण डी ध्यानी
Reactions

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ